ये है महाराज कर्सनदास मुलजी की कहानी...

फ़िल्म महाराज विवादों से घिरी पड़ी है, यह एक गुजराती पत्रकार कर्सनदास मुलजी के जीवन पर आधारित है, फ़िल्म 1862 के महाराज मानहानि मामले पर केंद्रित है। हांलाकि फ़िल्म में कुछ तथ्यों को तोड़ – मरोड़ कर पेश किया गया है। दिखाया गया है कि कर्सनदास की मंगेतर के साथ महाराज धर्म व पुराने रीति रिवाज़ का हवाला देकर शारीरिक सम्बंध बनाते हैं और कर्सन की मंगेतर भी ये चरण सेवा देकर खुद को भाग्यशाली मानती है।
मगर दास के समझाने व सगाई तोड़ देने के बाद वह समझ जाती है और पछता कर आत्महत्या कर लेती है। मगर असल में चरण सेवा का ये मामला कर्सन की मंगेतर के साथ नहीं बल्कि गुजरात की कई अन्य महिलाओं के साथ हुआ था।
चलिए समझें कौन थे कर्सनदास मुलजी
कर्सनदास का जन्म एक गुजराती वैष्णव परिवार में 25 जुलाई 1832 को हुआ था। वह एक पत्रकार, समाज सुधारक और प्रशासक थे। वे एल्फिंस्टोन कॉलेज के पूर्व छात्र थे और अंग्रेजी शिक्षित गुजराती पत्रकार थे, और धार्मिक संस्थानों की सत्ता के विरोधी थे। कहा जाता है वे ईसाई उपदेश पढ़ने के शौकिन थे। विधवा पुनर्विवाह पर उनके विचारों के चलते उनके परिवार ने उन्हें घर से निकाल दिया था।
कर्सनदास मुलजी पहले रस्त गोफ्तार और स्त्रीबोध पत्रिकाओं के लिए लिखते थे, लेकिन इन पत्रिकाओं का पाठकवर्ग मुख्य रूप से पारसी समुदाय तक ही सीमित था। इन पत्रिकाओं की सीमित पाठक संख्या से असंतुष्ट होकर, 1855 में मंगलभाई नाथुभाई की मदद से मुलजी ने "सत्यप्रकाश" नामक एक गुजराती समाचार पत्र की स्थापना की, जिसका उद्देश्य रूढ़िवादी हिंदुओं को लक्षित करना था।
कर्सनदास इसके संपादक थे किया जबकि रुसतमजी रानीना इसके प्रकाशक थे। हालांकि, सत्यप्रकाश केवल छ: वर्ष तक ही प्रकाशित हुआ और 1861 में बंद भी हो गया और बाद में रस्त गोफ्तार में ही विलीन हो गया। पत्र के लेखों में हिंदू जाति नेताओं को लक्षित किया गया और सामाजिक, धार्मिक प्रथाओं और रिवाजों पर हमले किए गए। मुलजी ने महिला शिक्षा, भव्य शादियों में अत्यधिक धन खर्च, विवाह समारोह और अंतिम संस्कार में छाती पीटने जैसी प्रथाओं का खुल कर विरोध किया था।
रिलीज़ से पहले फ़िल्म महाराज का भी काफ़ी विरोध हुआ था, मगर अब ये ओटीटी प्लैटफ़ार्म नैटफ़्लिक्स पर रिलीज़ कर दी गई है और विरोध व सुर्खियां दोनों बंटोर रही है।