ऐसा रहा भक्त चतुर्भुज दास जी का जीवन...

भक्त चतुर्भुज दास जी का जीवन परिचय
News Bharat Pratham Desk, New Delhi, 05 October 2025, Sunday, 02:53 IST
भक्त श्री चतुर्भुज दास जी भारत के महान भक्ति कवियों में से एक थे, जिनका स्थान वल्लभ संप्रदाय के “अष्टछाप कवियों” में प्रमुख है। उनका जन्म 16वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में ब्रजभूमि के जामुनावत्ता गाँव में हुआ था। उनके पिता प्रसिद्ध संत-कवि कुंभनदास जी थे। बाल्यकाल से ही चतुर्भुज दास जी में भक्ति, विनम्रता और सेवा भाव की गहरी प्रवृत्ति थी।
उन्होंने अपना जीवन श्रीनाथ जी (भगवान कृष्ण) की अनन्य भक्ति में समर्पित कर दिया। उनके पदों में प्रेम, विरह, वात्सल्य और समर्पण की मधुर धारा बहती है। वे ब्रजभाषा में रचना करते थे और उनके काव्य में सहजता, मधुरता और भावनात्मक गहराई स्पष्ट झलकती है।
चतुर्भुज दास जी का मानना था कि सच्ची भक्ति केवल पूजा नहीं, बल्कि प्रभु के प्रति हृदय से जुड़ा प्रेम और आत्मसमर्पण है। उनके भजन आज भी श्रीनाथजी की सेवा में, भजन संध्याओं और ब्रज के मंदिरों में गाए जाते हैं। उनका जीवन सरलता, त्याग और भक्ति का प्रतीक है।
अंतिम वर्षों में उन्होंने पूर्ण रूप से ध्यान और नामस्मरण में समय व्यतीत किया। माना जाता है कि उन्होंने लगभग 1640 ई. के आसपास ब्रजधाम में ही देह त्याग किया। उनकी भक्ति परंपरा आज भी लाखों कृष्णभक्तों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है।
चतुर्भुज दास जी द्वारा रचित पदों की विशेषताएँ
चतुर्भुज दास जी ने भक्ति, प्रेम और कृष्ण लीला पर आधारित अनेक सुंदर पदों की रचना की। उनके पदों में प्रभु के प्रति विरह, स्नेह, वात्सल्य और माधुर्य की भावना झलकती है। उन्होंने भक्त और भगवान के रिश्ते को माँ-बेटे, सखा या प्रिय के रूप में प्रस्तुत किया।
उनकी भाषा ब्रजभाषा थी, जिसमें भावों की मिठास और बोलचाल की सहजता मिलती है। उनके पदों में चित्रात्मकता और संगीत की लय इतनी सुंदर होती है कि श्रोता सहज ही भक्ति रस में डूब जाता है।
एक प्रसिद्ध पद में वे कहते हैं —
“गोवर्धन वासी साँवरे, तुम बिन रह्यो न जाए।”
इस एक पंक्ति में भक्त के हृदय की तड़प और कृष्ण के प्रति पूर्ण समर्पण झलकता है। उनके पदों की विशेषता यह है कि उनमें गूढ़ तत्वज्ञान को सरल और भावनात्मक शैली में प्रस्तुत किया गया है, जिससे साधक सहजता से आत्मिक अनुभूति कर सके।
चतुर्भुज दास जी के पाँच प्रसिद्ध भजन
“गोवर्धन वासी साँवरे” – यह भजन भक्त के हृदय में कृष्ण के विरह और प्रेम की गहराई को व्यक्त करता है।
“नव नागरी मनोहरी राधा” – इसमें राधा-कृष्ण की लीलाओं और उनकी सुंदर छवि का अत्यंत भावनात्मक चित्रण है।
“गोविंद चले चरावन गैया” – इसमें नन्हे गोपाल के ग्वाल रूप का मनमोहक वर्णन है।
“पालना झूलत सुंदर श्याम” – यह भजन बाल कृष्ण की झूले में झूलती छवि और वात्सल्य रस का सुंदर उदाहरण है।
“धौरी, धूमरी, पियरी, कारी” – इसमें कृष्ण के विविध रूपों और रंगों की भक्ति भावना प्रकट की गई है।
इन भजनों में कृष्ण-प्रेम, माधुर्य और भक्त की तल्लीनता का अद्भुत संगम मिलता है। आज भी ये भजन ब्रज, नाथद्वारा और वृंदावन में बड़े भाव से गाए जाते हैं।
निष्कर्ष
भक्त चतुर्भुज दास जी की रचनाएँ केवल काव्य नहीं, बल्कि आध्यात्मिक अनुभव और कृष्ण-भक्ति की साधना हैं। उन्होंने भक्तिरस को जन-जन तक पहुँचाया और प्रेम के माध्यम से आत्मा और परमात्मा के मिलन का संदेश दिया।
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