अष्टमी और नवमी में अंतर व पूजन विधि...


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नवरात्रि के नौ दिनों में माता दुर्गा की विशेष पूजा होती है। इनका समापन महाअष्टमी और महानवमी से होता है। दोनों ही दिन देवी की शक्ति की पराकाष्ठा और उनकी विजय का प्रतीक माने जाते हैं। अष्टमी का दिन देवी के राक्षसों पर प्रहार का और नवमी उनकी विजय का दिन है। इन दोनों तिथियों पर खासतौर से कन्या पूजन और हवन का महत्व होता है।

अष्टमी और नवमी का अंतर

अष्टमी: नवरात्रि का आठवाँ दिन, जब देवी ने चण्ड-मुंड जैसे दुष्ट राक्षसों का वध किया। इस दिन संधि पूजा (अष्टमी से नवमी की संधि बेला) अत्यंत शुभ मानी जाती है।

नवमी: नवरात्रि का नौवाँ दिन, जब महिषासुर के वध के बाद देवी ने सम्पूर्ण विजय प्राप्त की। इसे महानवमी कहते हैं और यह शक्ति की पूर्णता का प्रतीक है।

कौन बनाता है अष्टमी और नवमी

घर में: जिसने व्रत रखा हो या परिवार का मुखिया, वही कन्या पूजन कर भोग बनाता है।

मंदिरों में: पुजारी और समिति इस पूजन का आयोजन करते हैं।

कन्याएँ: 2 से 10 वर्ष तक की छोटी बच्चियाँ देवी का स्वरूप मानी जाती हैं। उन्हें बुलाकर पैर धोना, तिलक करना और प्रसाद खिलाना परंपरा है।

पूजन विधि

1. स्थान शुद्धि: सबसे पहले पूजा स्थल को साफ करें, गंगाजल या गोबर से शुद्धि करें।

2. घट स्थापना: कलश और दुर्गा प्रतिमा के सामने दीपक जलाएँ।

3. कन्या पूजन: 7, 9 या 11 कन्याओं को आमंत्रित करें, उनके पैर धोकर तिलक लगाएँ।

4. भोग: पूरी, काला चना और सूजी का हलवा बनाकर देवी और कन्याओं को अर्पित करें।

5. हवन: नवमी पर हवन करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। इसमें घी, हवन सामग्री और देवी मंत्र का उच्चारण करें।

6. दक्षिणा उपहार: कन्याओं को उपहार, फल, कपड़े या पैसे भेंट करें।

7. आशीर्वाद: अंत में उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लें और उपवास तोड़ें।

महत्व

अष्टमी और नवमी पर पूजा करने से साधक को देवी दुर्गा का आशीर्वाद मिलता है। घर में सुख-शांति आती है, नकारात्मकता दूर होती है और जीवन में साहस तथा समृद्धि बढ़ती है।

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